काश!हम विजयादशमी कुछ;और खास मना पाते।
रावण के साथ साथ;उन दानवों को भी मिटा पाते।।
बलात्कारियों के भीतरी रावण को;आग लगा दे।
नारी की आन-शान खातिर;अपनी जान लुटा दे।।
राम-कृष्ण के नाम रख;लोग करते गंदे काम।
कलयुग में अब राम का हुआ है नाम बदनाम।।
आज सभी भोग में लिप्त है;चाहे योगी हो महंत।
इस प्यारी भोली जनता को भी;भटकाते है संत।।
सिर्फ पुतलों के ही दहन का;चल पड़ा है रिवाज।
नारी की इज्जत लूटे जो;उसे जला न सका समाज।।
कहना"दीपक"का मान;वरना नैया पहुँचेगी जब मजधार में।
बचाने वाला कोई नहीं होगा;और न ही दम रहेगी पतवार में।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094