Saturday, 30 September 2017

विजयादशमी/दशहरा पर कविता

काश!हम विजयादशमी कुछ;और खास मना पाते।
रावण के साथ साथ;उन दानवों को भी मिटा पाते।।

बलात्कारियों के भीतरी रावण को;आग लगा दे।
नारी की आन-शान खातिर;अपनी जान लुटा दे।।

राम-कृष्ण के नाम रख;लोग करते गंदे काम।
कलयुग में अब राम का हुआ है नाम बदनाम।।

आज सभी भोग में लिप्त है;चाहे योगी हो महंत।
इस प्यारी भोली जनता को भी;भटकाते है संत।।

सिर्फ पुतलों के ही दहन का;चल पड़ा है रिवाज।
नारी की इज्जत लूटे जो;उसे जला न सका समाज।।

कहना"दीपक"का मान;वरना नैया पहुँचेगी जब मजधार में।
बचाने वाला कोई नहीं होगा;और न ही दम रहेगी पतवार में।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

Thursday, 21 September 2017

नवरात्रि पर कविता

आये है नवरात्र के दिन;करूँ माँ का पूजन अर्चन।
आते माँ की शरण में है सब;हो सज्जन चाहे दुर्जन।।
आजा तू भी शरण में ;कर माँ का वंदन बन्दे।
भाग्य तेरे जाग जायेंगे;कटे सब कष्टों के फंदे।।

नौ दिन,नव रूप लिए,है आयी माँ दुर्गा हरने पाप।
काली बन संहार करे जब,तब असुर है जाते काँप।।
फिर भी मनुज तू स्वार्थ में अँधा,कर रहा है गलतियाँ;
बेटे की झूठी आस लिए,बेटी को है माने अभिशाप।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं-9628368094,7985502377