भूतभावन,विनाशक ललाटे चंद्र शोहे।
कर त्रिशूल,भुजंगधारी,त्रिनेत्र मन मोहे।।
डमरू बजाकर करे नृत्य भोला।
पावन जहाँ"दीपक"नगरी गोला।।
करुँ वंदन निशदिन मैं तुम्हारा।
सदा ही करो कल्याण हमारा।।
मंद-मंद समीर आज,सुंदरता चहुँओर भरे।
हे नीलकंठ!तूने,है सबके दुःख दूर करे।।
कर दे मुझ दीन पर भी,दया थोड़ी भगवन;
जपता मैं निशदिन,हर हर महादेव हरे।।
रचयिता/लेखक-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं.-9628368094,7985502377
कर त्रिशूल,भुजंगधारी,त्रिनेत्र मन मोहे।।
डमरू बजाकर करे नृत्य भोला।
पावन जहाँ"दीपक"नगरी गोला।।
करुँ वंदन निशदिन मैं तुम्हारा।
सदा ही करो कल्याण हमारा।।
मंद-मंद समीर आज,सुंदरता चहुँओर भरे।
हे नीलकंठ!तूने,है सबके दुःख दूर करे।।
कर दे मुझ दीन पर भी,दया थोड़ी भगवन;
जपता मैं निशदिन,हर हर महादेव हरे।।
रचयिता/लेखक-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं.-9628368094,7985502377
No comments:
Post a Comment