इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।
आ जाएं कितनी भी बाधाएँ,
मेरे अवसान के लिए।
मात दे दूंगा सभी को,
अपनों की मुस्कान के लिए।।
निडर होकर संघर्षों से,लड़ते रहना है।
इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।
लड़ेंगे हम निर्मेयों से,
जिंदगी से हारेंगे कभी न।
निडर होकर लड़ेंगे हम,
डर से डरेंगे कभी न।।
डर को डराएंगे हम,डर से कहते रहना है।
इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"