Sunday, 28 May 2017

युवाओं का भविष्य हेतु संघर्ष-इतनी दूर से आये हम

इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।

आ जाएं कितनी भी बाधाएँ,
मेरे अवसान के लिए।
मात दे दूंगा सभी को,
अपनों की मुस्कान के लिए।।
निडर होकर संघर्षों से,लड़ते रहना है।

इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।

लड़ेंगे हम निर्मेयों से,
जिंदगी से हारेंगे कभी न।
निडर होकर लड़ेंगे हम,
डर से डरेंगे कभी न।।
डर को डराएंगे हम,डर से कहते रहना है।

इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"

Monday, 22 May 2017

मस्त बहारों का मौसम,बालों का रंग सुनहरा

मस्त बहारों का मौसम,बालों का रंग सुनहरा।
कैसे भूलूँ मैं उसको,जो चाँद-सा रोशन चेहरा।।

चंचल नजरों का क्या,नजर तो मिल जाती है।
जब तू न हो तो तेरे बिन,यादें तड़पाती है।।
मिल जाये नज़र जो फिर से,मैं डूब जाऊं गहरा।
मस्त बहारों का★★★★★★★★★★★।।

हर वक्त तेरी यादों का,आंखों में है समंदर रहता।
फिर भी न जाने जहां क्यूँ, मुझपे है शक करता।।
तुझ पर रहता हरदम,है इस दुनियाँ का पहरा।
मस्त बहारों का★★★★★★★★★★★।।

बस एक दुआ मेरी बंधन में,हम दोनों बंध जाए।
टूटे न बंधन ऐसा जो,सातों जनम साथ निभाए।।
प्यार में तेरे फिर पागल हो,नाचूँ बांध के सेहरा।
मस्त बहारों का★★★★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"

Thursday, 11 May 2017

माँ-बाप से बढ़कर,कोई भगवान नहीं है

कि माँ-बाप से बढ़कर,कोई भगवान नहीं है। 
उनके जैसा दुनियाँ में,कोई धनवान नहीं है।।

मेहनत-मजदूरी करके,बच्चों को सींचते है। 
तकलीफ न हो उनको यही, दिन-रात सोचते है।। 
बच्चों के खातिर कुछ भी करे,कोई अभिमान नहीं है। 
माँ-बाप से★★★★★★★★★★★★★★★।।

दुनियाँ में सभी देवों का,स्थान दूजा है। 
माँ-बाप की सेवा ही,सबसे बड़ी पूजा है।। 
"दीपक"बनकर जलते रहे,ऐसा कोई धैर्यवान नहीं है। 
माँ-बाप से★★★★★★★★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

Sunday, 7 May 2017

गुरु,गाय,गौरी दुःखी, दुःखी है आज ये जहान

गुरु,गाय,गौरी दुखी,दुःखी है आज ये जहाँन।
पतन का है यही मूल ,नारी का जहाँ अपमान।।

इनके अश्रु बहे जब,है समझ प्रलय का संकेत।
पाप दिन पर दिन बढ़ें,मानव है फिरहु अचेत।।

पावन देश भारत को कैसे कहूँ  मैं महान।
जननी का अपमान,जब करती हो संतान।।

ऐसे मानव नहीं वो दानव का रूप है।
इंसान नहीं है ,शैतान का स्वरूप है।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

नैनो की तिरछी नजर ने,मुझको घायल कर डाला

नैनो की तिरछी नजर ने,मुझको घायल कर डाला।
न जाने कैसा वक्त मेरा,जो तुझसे पड़ा है पाला।।

तेरी नजरो का जादू,खींचे यूँ है मुझको।
आँखो से इशारा मेरा,झलके है तुझको।।
खींचा मैं चला आऊँ,तेरी आँखो का नशा निराला।
नैनो की★★★★★★★★★★।।

मदहोश जवानी देख तेरी,होश मेरे उड़ जाए।
मुस्कान तेरी मेरे दिल को,यूँ पागल कर जाए।।
चाँद सा चेहरा देख तेरा,हो जाऊँ मैं दिवाला।
नैनो की★★★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

Thursday, 4 May 2017

वक्त का पहिया(छात्र जीवन से मजदूर जीवन)

कहते है घर में अगर फूट पड़ी हो तो उस घर में कभी भी कुछ अच्छा नहीं हो सकता। चार पंक्तियाँ कल्पना करते हुए ऐसे परिवार पर है जहाँ हमेशा घर में लड़ाई होती है,पति हमेशा किसी न किसी बहाने से रोज पत्नी से लड़ाई करता,और उनकी औलाद का विद्यार्थी जीवन है जिसे घर में फूट/लड़ाई पसंद नहीं,उसका मानना था कि जिस घर में हमेशा लड़ाई होती हो उस घर की कभी उन्नति नहीं हो सकती और उसके मना करने पर उसका बाप नाराज हो जाता है और उससे कहता है कि जा मुझसे जबान लड़ाता है मैं तुझे नहीं पढ़ाऊगां देखता हु तू अब क्या करेगा तुझे बर्बाद कर दूँगा,पर एक माँ ही थी जिसने उसे सबूरी दिलाई परंतु उस बाप ने अपनी औलाद को घर से भगा दिया.....।और अब वही अपना जीवन यापन मजदूर की भांति व्यतीत करता है;पंक्तियाँ आप सभी तक निवेदित-

हर दुःख में मेरी माँ ने,सबूरी करा दी।
की जो जिदें उस माँ ने,पूरी करा दी।।
वक्त का पहिया ऐसे चला मेरे तन पर;
कि वक्त ने आज मुझे,मजूरी करा दी।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

मंदिर में नवयुवक

मित्रों ,विगत दिनों मैं मंदिर गया था,आँखों देखी बात है मैंने मंदिर में विराजमान शिवलिंग के दर्शन किये,फिर मैं जब बाहर निकला तो फिलोस्फिक दृष्टिकोण से देखा तो लगा की कुछ लोग तो सच्चे मन से आते परंतु कुछ लोग केवल और केवल रंगिलियां देखने आते है।ज्यादातर अब जहाँ तक मैंने देखा है तो नवयुवक आज के जमाने के अनुसार प्रेम प्रसंग के चक्कर में मंदिर में आना जाना लगा रहता है। मैंने एक युवक को देखा जो बढ़िया,तिलक लगाये हुए,बना-ठना था,परंतु वो केवल मुझे स्मार्ट दिखने का प्रतीक लगा। पूजा बेमन से कर रहे थे पर उनकी नजरे रंगिलियों पर थी।चार पंक्तियाँ मेरे मन में इसी बात पर उमड़ी जो आप सभी तक निवेदित-

आँखों देखी मनचलों की दशा,
तो लगा मंदिर में घोर पाप होता है।
कैसे हो भला इस भारत देश का जहाँ,
तिरछी नजरों से ईश्वर का जाप होता है।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

Wednesday, 3 May 2017

सरस्वती-वंदना(हे सरस्वती!मेरी माता)

हे सरस्वती!मेरी माता, हे सरस्वती!मेरी माता।
ज्ञानदायनी,वीणावादिनी कहकर मैं ध्याता।।

ज्ञान की देवी तुम हो,देती सबको ज्ञान।
जो भी तेरा ध्यान लगावे,बनता वही महान।।
तेरे ध्यान से माता,जगत बुद्धि पाता।
हे सरस्वती!मेरी माता★★★★★★★★★★।।

सेवा करूँ मैं दीन-दुखी की,दो मुझको वरदान।
मात-पिता सेवा करना, गुरुओं का सम्मान।।
परमपिता माँ आदिशक्ति के,चरणों में सुखपाता।
हे सरस्वती!मेरी माता★★★★★★★★★★।।

करूँ वंदन मैं तेरा, करो कृपा सदा मुझ पर।
चरणों में मैं ध्यान लगाऊँ, करो दया माँ मुझ पर।।
गाऊँ वंदना मैं तेरी,मुझको कुछ नहीं आता।
हे सरस्वती!मेरी माता★★★★★★★★★★।।

तेरी कृपा होती जिस पर,बने वही मतवाला।
सूर्य नहीं बन सकता मैं,"दीपक"बन दूँ उजाला।।
"दीपक"नाम अमर माँ कर दे,तुम्हीं हो भाग्य विधाता।
हे सरस्वती!मेरी माता★★★★★★★★★★★।।

मुक्तक- दे साथ मेरा माँ तू हंसवाहिनी।
             कर दे कंठ सरस,वीणावादिनी।।
             दे-दे ज्ञान अपार तू ,माँ मुझको;
             जला ज्ञान का"दीपक"ज्ञानदायिनी।।

            हे हंसवाहिनी माँ,तेरा साथ रहे हरदम। 
            रहे दया-दृष्टि तेरी,पनपे न कोई रे गम।।
            है ज्ञान की देवी तू,कहे सब ज्ञानदायिनी; 
            दे ज्ञान का भंडार माँ,यूँ बढ़ते रहे कदम।। 

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

Tuesday, 2 May 2017

कांग्रेस सरकार

कूद गयी अखाड़े में,देखो फिर से कांग्रेस।
करे नहीं बात जो कभी भी,फेस टू फेस।।
हारना तो उनका अब पक्का ही है दोस्तों;
जिन पर हो लदे अनगिनत,ढेरों सारे केस।।

हुआ सफाया कॉंग्रेस का,देखो हर जगह से।
हारे गये आज ये,अपने कर्मों की वजह से।।

करम फूटे इनके यारो,तो फूटते ही चले गए।
हर जगह से इनके,क्यूँ हाथ फिसलते गए।।

सत्ता का लालच बहुत,बेकार होता है।
चूहा भी अपने वक्त पर,शेर होता है।।


रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

होली-गीत

खेले राधा संग कन्हाई; रे होली भैया।
मुबारक हो सबही के; होली दिन भैया।।

होली घर-घर; खुशियाँ लावेला।
इक-दूजे के; प्यार सिखावेला।।
हुइहै गाल सबही के रे; लाल-पीले भैया।
खेले राधा संग कन्हाई★★★★★★।।

होली प्यार के; अनमोल त्यौहार बा।
खेलत रंग कान्हा; अरु ब्रजवाला।।
मस्ती में सबु आज; झुमिहै रे भैया।
खेले राधा संग कन्हाई★★★★।।

प्यार के रंग मा; सब रंग डाला।
कौनौ शिकवा न; आपन मन में पाला।।
प्रेम से रउआ सब; होली मनावा रे भैया..........
खेले राधा संग कन्हाई★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

रक्षाबंधन पर कविता

सावन   का   महीना, भाई   बहनों  का  प्यार।
मुबारक हो सभी को, रक्षाबंधन   का त्योहार।।

प्यारी   सी   राखी, बतलाती   है  अटूट  प्यार।
मुबारक   हो   सभी   को, रक्षाबंधन   त्योहार।।

जा   रही    है  आज   लज्जा, बहनों   की   यार।
मुबारक  हो  सभी  को, रक्षाबंधन  का  त्योहार।।

रो-रो   कर  लगाती  बहना, आज  के  दिन गुहार।
मुबारक  हो  सभी  को, रक्षाबंधन   का   त्योहार।।

कहे "दीपक" बहनों की लज्जा की, रक्षा करना यार।
मुबारक   हो  सभी  को, रक्षाबंधन   का   त्योहार।।

मुक्तक-

रक्षाबंधन   के   दिन ,मिठाईयों   की   है   बहार।
सदा-सदा के लिए अमर है ,भाई बहनों का प्यार।।
" दीपक " भाईयों सभी, रखना राखी की लाज यार।
मुबारक   हो   सभी   को, रक्षाबंधन   का  त्योहार।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

चुनावी सिलसिला

सभी दलों के बीच में,छिड़ी चुनावी जंग।
जनता का दल है नहीं,जनता सबसे तंग।।
चमचे हर दल में बहुत,नेता जी के खास।
जीते कैंडिडेट बस,है मौके की आस।।
जीते कैंडिडेट जब,हो अपनी सरकार।
रोब जमेगा हर तरफ,बाकि सब बेकार।।
नेता कुकुर एक सम,मौसम इनका एक।
कुकरी संग कुकुर फिरैं,कार्तिक मास अनेक।।
नेता दिखे चुनाव में,पीछे चमचा रेल।
मस्ती चढ़ी पुलाव में,स्वार्थ का है खेल।।
बड़े बड़े वादे करे,मिटे न गरीबी देश।
जनता के पर नोचते,नेता करते ऐश।।
एक दूसरे पर सभी,कीचड़ रहे उछाल।
सत्ता में ही पहुँचते,हो सब मालामाल।।
हाथ जोड़कर मागंते,जनता से वोट।
मनसूबे नापाक है,दे जनता को चोट।।
मंदिर मुद्दा छोड़कर,महँगाई मुद्दा अपनाय।
काला धन की बात कर,ली सरकार बनाय।।
महँगाई कम न हुई,काला हुआ न सफ़ेद।
परेशान जनता हुई,यही कवि को खेद।।
हरामखोरों की कमी नहीं,है हिंदुस्तान।
दोधारी तलवार ज्यों,किन्तु एक ही म्यान।।
लंबा तिलक लगायके,राम नाम पट डाल।
मौका रहे तलाश है,फँस जाये चिड़िया जाल।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

चुनावी बागडोर

कांग्रेस का हाथ ,है सबके साथ।
गुंडों की औकात,समाजवादी के साथ।।
दलित पिछड़ो की बात,बसपा के साथ।
खुराफात की बात,भाजपा के साथ।।
जिसने राम को है जपा,वही है भाजपा।
जो भगवान को भूला उससे जनता है खफा।।
ऐसे दल के नेता का चुनाव में है पत्ता सफ़ा।
दगेबाजों को जनता,अब  कर देगी दफ़ा।।
इंसान तो इंसान है राम को बख्शा नहीं।
भाजपा शैतान है,पर पाक का नक्शा नहीं।।
गठबंधन खिचड़ी पकी,सपा कांग्रेस बीच।
कोई जनता का न भला,सबके सब है नीच।।
समय समय की बात है,आज समय का फेर।
छीनी साइकिल बाप की, ये कैसा है अंधेर।।
खलनायक है अमर सिंह,महाकाल शिवपाल।
जादूगर अखिलेश का, चला है इंद्रजाल।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094