गुरु,गाय,गौरी दुखी,दुःखी है आज ये जहाँन।
पतन का है यही मूल ,नारी का जहाँ अपमान।।
इनके अश्रु बहे जब,है समझ प्रलय का संकेत।
पाप दिन पर दिन बढ़ें,मानव है फिरहु अचेत।।
पावन देश भारत को कैसे कहूँ मैं महान।
जननी का अपमान,जब करती हो संतान।।
ऐसे मानव नहीं वो दानव का रूप है।
इंसान नहीं है ,शैतान का स्वरूप है।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
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