Tuesday, 2 May 2017

चुनावी सिलसिला

सभी दलों के बीच में,छिड़ी चुनावी जंग।
जनता का दल है नहीं,जनता सबसे तंग।।
चमचे हर दल में बहुत,नेता जी के खास।
जीते कैंडिडेट बस,है मौके की आस।।
जीते कैंडिडेट जब,हो अपनी सरकार।
रोब जमेगा हर तरफ,बाकि सब बेकार।।
नेता कुकुर एक सम,मौसम इनका एक।
कुकरी संग कुकुर फिरैं,कार्तिक मास अनेक।।
नेता दिखे चुनाव में,पीछे चमचा रेल।
मस्ती चढ़ी पुलाव में,स्वार्थ का है खेल।।
बड़े बड़े वादे करे,मिटे न गरीबी देश।
जनता के पर नोचते,नेता करते ऐश।।
एक दूसरे पर सभी,कीचड़ रहे उछाल।
सत्ता में ही पहुँचते,हो सब मालामाल।।
हाथ जोड़कर मागंते,जनता से वोट।
मनसूबे नापाक है,दे जनता को चोट।।
मंदिर मुद्दा छोड़कर,महँगाई मुद्दा अपनाय।
काला धन की बात कर,ली सरकार बनाय।।
महँगाई कम न हुई,काला हुआ न सफ़ेद।
परेशान जनता हुई,यही कवि को खेद।।
हरामखोरों की कमी नहीं,है हिंदुस्तान।
दोधारी तलवार ज्यों,किन्तु एक ही म्यान।।
लंबा तिलक लगायके,राम नाम पट डाल।
मौका रहे तलाश है,फँस जाये चिड़िया जाल।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

No comments:

Post a Comment