Thursday, 4 May 2017

वक्त का पहिया(छात्र जीवन से मजदूर जीवन)

कहते है घर में अगर फूट पड़ी हो तो उस घर में कभी भी कुछ अच्छा नहीं हो सकता। चार पंक्तियाँ कल्पना करते हुए ऐसे परिवार पर है जहाँ हमेशा घर में लड़ाई होती है,पति हमेशा किसी न किसी बहाने से रोज पत्नी से लड़ाई करता,और उनकी औलाद का विद्यार्थी जीवन है जिसे घर में फूट/लड़ाई पसंद नहीं,उसका मानना था कि जिस घर में हमेशा लड़ाई होती हो उस घर की कभी उन्नति नहीं हो सकती और उसके मना करने पर उसका बाप नाराज हो जाता है और उससे कहता है कि जा मुझसे जबान लड़ाता है मैं तुझे नहीं पढ़ाऊगां देखता हु तू अब क्या करेगा तुझे बर्बाद कर दूँगा,पर एक माँ ही थी जिसने उसे सबूरी दिलाई परंतु उस बाप ने अपनी औलाद को घर से भगा दिया.....।और अब वही अपना जीवन यापन मजदूर की भांति व्यतीत करता है;पंक्तियाँ आप सभी तक निवेदित-

हर दुःख में मेरी माँ ने,सबूरी करा दी।
की जो जिदें उस माँ ने,पूरी करा दी।।
वक्त का पहिया ऐसे चला मेरे तन पर;
कि वक्त ने आज मुझे,मजूरी करा दी।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094

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