सहयोगी लेखक:- कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
Sunday, 3 December 2017
पुस्तक-"मातृ-पितृ पूजन व्रत कथा"-PDF Download
सहयोगी लेखक:- कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
Wednesday, 29 November 2017
नगरीय निकाय चुनाव पर कविता
स्वारथ खातिर लोग कुछ,आ करते पहचान।
जिन लोगों ने आज तक,किया नहीं सम्मान।।
किया नहीं सम्मान,कहो किस दम पर लड़ते।
पकड़ लिया मैदान,किन्तु है पैर उखड़ते।।
जनता का दिल जीतो,पहले करिये परस्वारथ।
जीते तभी चुनाव,सफ़ल होगा निजस्वारथ।।
सुख-दुःख में जो काम आता,उसको ही हमें जिताना है।
मतलब परस्त बस मौके पर,बुनते हर ताना-बाना है।।
किन्तु जनता सब कुछ देखती,सुनती-समझती है;
जो तन के उजले-मन के काले,उनको बन्धु हराना है।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं.-9628368094,7985502377
Wednesday, 15 November 2017
नमो 2019
गुजरात की दशा देखकर,होश हो रहे दंग।
मोदी जी को लग रहा,हारेंगे हम जंग।।
हारेंगे हम जंग,शुरू हो उलटी गिनती।
हारे आप चुनाव,कर रही जनता विनती।।
फिसल हिमाचल रहा,न बनने वाली बात।
दिल्ली को फिर छोड़कर,भागोगे गुजरात।।
अगर आप है हारते,हिमाचल-गुजरात।
तब तुमको मालूम हो,मोदी जी औकात।।
मोदी जी औकात,दिखाए जनता पिछड़ी।
मोदी-योगी-राजनाथ ने,खूब पकाई खिचड़ी।।
दो हज़ार उन्नीस में,करो राम का जाप।
बातों में भरमा रहे,भोली जनता आप।।
केवल वादों से नहीं,भरने वाला पेट।
भोली जनता का सभी,करते है आखेट।।
करते है आखेट,दे रही जनता गारी।
बंद किया अनुदान,सब्सिडी की तैयारी।।
मजदूर-किसान-कर्मचारी,दे तुम्हें न सम्बल।
नेता बन प्रतिपक्ष,सदन में बैठो केवल।।
घूमें देश-विदेश पर,नहीं सपारे आप।
विषधर काला नाग है,पाक सभी का बाप।।
पाक सभी का बाप,न करता किसी से मेल।
मौका पाते ही तुरत,देता सबको पेल।।
मचा रहा आतंक,खुशी से फिर भी झूमें।
बदल सके न आप,नतीजा क्या है घूमें।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं.-9628368094,7985502377
Sunday, 8 October 2017
करवाचौथ पर कविता
नवदुर्गा व्रत पूर्ण कर,माँ से मांगू माँग।
माँ गौरी कृपा करो,कर दो अमर सुहाग।।
भरी माँग से मांगती,दे दो माँ सिंदूर।
अमर माँग मेरी रहे,भले पति हो दूर।।
उमा-महेश-गणेश,व्रत करवाचौथ महान।
पत्नी का सौभाग्य है,पति भगवान समान।।
हँसकर के सब कुछ सहे,किन्तु न पति बिछड़े।
भूखी प्यासी रहे,सहे सब गम अरू दुखड़े।।
हो सारे गम दूर मिलें जब,सजन-सजनिया।
इंतजार के बाद,खिले जब गगन चँदनिया।।
पूजन करे गणेश का उमा-महेश मनाय।
दर्शन करके चंद्र का,दे जल अर्घ्य चढ़ाय।।
सुहागिनों की शान है,माँग भरा सिंदूर।
"दीपक"जब तक जल रहा,हो प्रकाश भरपूर।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं.-9628368094,7985502377
Saturday, 30 September 2017
विजयादशमी/दशहरा पर कविता
काश!हम विजयादशमी कुछ;और खास मना पाते।
रावण के साथ साथ;उन दानवों को भी मिटा पाते।।
बलात्कारियों के भीतरी रावण को;आग लगा दे।
नारी की आन-शान खातिर;अपनी जान लुटा दे।।
राम-कृष्ण के नाम रख;लोग करते गंदे काम।
कलयुग में अब राम का हुआ है नाम बदनाम।।
आज सभी भोग में लिप्त है;चाहे योगी हो महंत।
इस प्यारी भोली जनता को भी;भटकाते है संत।।
सिर्फ पुतलों के ही दहन का;चल पड़ा है रिवाज।
नारी की इज्जत लूटे जो;उसे जला न सका समाज।।
कहना"दीपक"का मान;वरना नैया पहुँचेगी जब मजधार में।
बचाने वाला कोई नहीं होगा;और न ही दम रहेगी पतवार में।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094
Thursday, 21 September 2017
नवरात्रि पर कविता
आये है नवरात्र के दिन;करूँ माँ का पूजन अर्चन।
आते माँ की शरण में है सब;हो सज्जन चाहे दुर्जन।।
आजा तू भी शरण में ;कर माँ का वंदन बन्दे।
भाग्य तेरे जाग जायेंगे;कटे सब कष्टों के फंदे।।
नौ दिन,नव रूप लिए,है आयी माँ दुर्गा हरने पाप।
काली बन संहार करे जब,तब असुर है जाते काँप।।
फिर भी मनुज तू स्वार्थ में अँधा,कर रहा है गलतियाँ;
बेटे की झूठी आस लिए,बेटी को है माने अभिशाप।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं-9628368094,7985502377
Sunday, 6 August 2017
काश! बहन होती मेरी,मैं भी राखी बंधवाता
काश!बहन मेरी होती,मैं भी राखी बंधवाता।
अपनी प्यारी बहना को,मैं भी दुलराता।।
किस्मत वाले है वो भाई;
बहन का प्यार,जिन्हें मिलता है।
ख़ुशी हो या गम उनको
अहसास उन्हें होता है।।
रूठ अगर वो जाती मुझसे,उसको फिर मैं मनाता।
काश!बहन मेरी होती★★★★★★★★★।।
रिश्ते है कई दुनियाँ में,
पर ये रिश्ता कुछ खास है।
बहनों के लिए राखी,
धागा नहीं विश्वास है।
सूनी न कलाई मेरी रहती,मैं भी भाई कहलाता।
काश!बहन मेरी होती★★★★★★★★★।।
प्यारी बहना को अगर,
कोई रावण सताता है।
बहना का एक ही बस,
भाई सहारा होता है।।
मरते दम तक"दीपक"भी अपना फर्ज़ निभाता।
काश!बहन मेरी होती★★★★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं.-9628368094,7985502377
Monday, 24 July 2017
बेटे!कभी निराश न होना
मित्रों,यह कविता उस पिता पर लिखी है जो अपने बेटे को कभी निराश नहीं देखना चाहता,और साहस से हर चीज को हासिल करने के लिए कहता है...ऐसे पिता को मेरा नमन!... पंक्तियाँ प्रस्तुत है-
बेटे!कभी निराश न होना।
चाहे जितना अंधकार हो;
पर प्रकाश की आस न खोना।।
बेटे!कभी निराश न होना।
जीवन तो संघर्ष क्षेत्र है,
जब तक जीना तब तक लड़ना।
वह जीना भी क्या जीना है,
जिसमें पड़ता पांव पकड़ना।।
तुम आने वाले जीवन में;
आंसू से मुंह कभी न धोना।
बेटे!कभी निराश न होना........२
आंधी आती है आने दो,
घूमड़ घटाएं गिर जाने दो।
तुम अपना साहस मत छोड़ो,
बाधाओं को धमकाने दो।।
कांटो पर चलकर ही मिलता;
है फूलों का नरम बिछोना।
बेटे!कभी निराश न होना........२
एक लक्ष्य निर्धारित करना,
फिर प्रयत्न के बाण चलाना।
तुम ऐसे मुस्काना तुमसे,
कांटे तक सीखें मुस्काना।।
तुम सदैव अपनी माला में;
भांति-भांति के फूल पिरोना।
बेटे!कभी निराश न होना........२
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं.-9628368094,7985502377
Sunday, 25 June 2017
ईद पर कविता
दिखावे की दुनियाँ में सब कुछ लाल लाल है।
महगाईं के ज़माने में सारे गरीब भी बेहाल है।।
मुबारकबाद दे रहा हूँ मोहब्बती ईद का सभी को;
कि ईद में बकरे ही नहीं आदमी भी हलाल है।।
हर साल की तरह आज फिर से,ईद आयी है।
मुल्क में सिर्फ आपसी,मतभेद की लड़ायी है।।
गर न हो आपसी हसद,जाति-धर्मं का भेदभाव;
ऐसी तमन्ना-ए-दीद की मैंने,बस आस लगायी है।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.नं.-9628368094,7985502377
E-Mail:poetkuldeepjlsharma75@gmail.com
Wednesday, 14 June 2017
युवाओं की मंजिल में रुकावट-Break-Up & Patch-Up
मित्रों,प्रतिक्रिया अवश्य दें-
आज कुछ पंक्तियाँ युवाओं पर है।ज्यादातर युवाओं का विद्यार्थी जीवन Break-Up और Patch-Up में निकल जाता है,उसके जीवन में Girl की महत्ता हो जाती है,Goal की कोई महत्ता नहीं रहती।अगर युवा Goal पर ध्यान दे Girl अपने आप आ जायेगी और Girl के चक्कर में न तो Goal पा पाते है और न ही Girl. हमें स्वयं ही बदलना होगा अगर हम कुछ करना मंजिल को हासिल करना चाहते है तो,कोई बदलने के लिए नहीं आएगा।
धन्यवाद।
किसी ने सही कहा-बुरा न सुनो,बुरा न कहो;
और बुरा जब दिखे दोस्तों,तो आंखे मूँद लो।
मंज़िल पे बहुत जल्द पहुँच जाओगे अगर;
ज़ुल्फों से निकलने का कोई,रास्ता ढूंढ लो।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
Sunday, 28 May 2017
युवाओं का भविष्य हेतु संघर्ष-इतनी दूर से आये हम
इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।
आ जाएं कितनी भी बाधाएँ,
मेरे अवसान के लिए।
मात दे दूंगा सभी को,
अपनों की मुस्कान के लिए।।
निडर होकर संघर्षों से,लड़ते रहना है।
इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।
लड़ेंगे हम निर्मेयों से,
जिंदगी से हारेंगे कभी न।
निडर होकर लड़ेंगे हम,
डर से डरेंगे कभी न।।
डर को डराएंगे हम,डर से कहते रहना है।
इतनी दूर से आये हम,अपनों को छोड़कर;
नाम ले दुनियाँ मेरा,कुछ तो ऐसा करना है।
भ्रमित न हो पग मेरे,मंजिल से ए खुदा!बस यही;
विश्वास की लौ लिए,आगे बढ़ते रहना है।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
Monday, 22 May 2017
मस्त बहारों का मौसम,बालों का रंग सुनहरा
मस्त बहारों का मौसम,बालों का रंग सुनहरा।
कैसे भूलूँ मैं उसको,जो चाँद-सा रोशन चेहरा।।
चंचल नजरों का क्या,नजर तो मिल जाती है।
जब तू न हो तो तेरे बिन,यादें तड़पाती है।।
मिल जाये नज़र जो फिर से,मैं डूब जाऊं गहरा।
मस्त बहारों का★★★★★★★★★★★।।
हर वक्त तेरी यादों का,आंखों में है समंदर रहता।
फिर भी न जाने जहां क्यूँ, मुझपे है शक करता।।
तुझ पर रहता हरदम,है इस दुनियाँ का पहरा।
मस्त बहारों का★★★★★★★★★★★।।
बस एक दुआ मेरी बंधन में,हम दोनों बंध जाए।
टूटे न बंधन ऐसा जो,सातों जनम साथ निभाए।।
प्यार में तेरे फिर पागल हो,नाचूँ बांध के सेहरा।
मस्त बहारों का★★★★★★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
Thursday, 11 May 2017
माँ-बाप से बढ़कर,कोई भगवान नहीं है
कि माँ-बाप से बढ़कर,कोई भगवान नहीं है।
उनके जैसा दुनियाँ में,कोई धनवान नहीं है।।
मेहनत-मजदूरी करके,बच्चों को सींचते है।
तकलीफ न हो उनको यही, दिन-रात सोचते है।।
बच्चों के खातिर कुछ भी करे,कोई अभिमान नहीं है।
माँ-बाप से★★★★★★★★★★★★★★★।।
दुनियाँ में सभी देवों का,स्थान दूजा है।
माँ-बाप की सेवा ही,सबसे बड़ी पूजा है।।
"दीपक"बनकर जलते रहे,ऐसा कोई धैर्यवान नहीं है।
माँ-बाप से★★★★★★★★★★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094
Sunday, 7 May 2017
गुरु,गाय,गौरी दुःखी, दुःखी है आज ये जहान
गुरु,गाय,गौरी दुखी,दुःखी है आज ये जहाँन।
पतन का है यही मूल ,नारी का जहाँ अपमान।।
इनके अश्रु बहे जब,है समझ प्रलय का संकेत।
पाप दिन पर दिन बढ़ें,मानव है फिरहु अचेत।।
पावन देश भारत को कैसे कहूँ मैं महान।
जननी का अपमान,जब करती हो संतान।।
ऐसे मानव नहीं वो दानव का रूप है।
इंसान नहीं है ,शैतान का स्वरूप है।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
नैनो की तिरछी नजर ने,मुझको घायल कर डाला
नैनो की तिरछी नजर ने,मुझको घायल कर डाला।
न जाने कैसा वक्त मेरा,जो तुझसे पड़ा है पाला।।
तेरी नजरो का जादू,खींचे यूँ है मुझको।
आँखो से इशारा मेरा,झलके है तुझको।।
खींचा मैं चला आऊँ,तेरी आँखो का नशा निराला।
नैनो की★★★★★★★★★★।।
मदहोश जवानी देख तेरी,होश मेरे उड़ जाए।
मुस्कान तेरी मेरे दिल को,यूँ पागल कर जाए।।
चाँद सा चेहरा देख तेरा,हो जाऊँ मैं दिवाला।
नैनो की★★★★★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
Thursday, 4 May 2017
वक्त का पहिया(छात्र जीवन से मजदूर जीवन)
कहते है घर में अगर फूट पड़ी हो तो उस घर में कभी भी कुछ अच्छा नहीं हो सकता। चार पंक्तियाँ कल्पना करते हुए ऐसे परिवार पर है जहाँ हमेशा घर में लड़ाई होती है,पति हमेशा किसी न किसी बहाने से रोज पत्नी से लड़ाई करता,और उनकी औलाद का विद्यार्थी जीवन है जिसे घर में फूट/लड़ाई पसंद नहीं,उसका मानना था कि जिस घर में हमेशा लड़ाई होती हो उस घर की कभी उन्नति नहीं हो सकती और उसके मना करने पर उसका बाप नाराज हो जाता है और उससे कहता है कि जा मुझसे जबान लड़ाता है मैं तुझे नहीं पढ़ाऊगां देखता हु तू अब क्या करेगा तुझे बर्बाद कर दूँगा,पर एक माँ ही थी जिसने उसे सबूरी दिलाई परंतु उस बाप ने अपनी औलाद को घर से भगा दिया.....।और अब वही अपना जीवन यापन मजदूर की भांति व्यतीत करता है;पंक्तियाँ आप सभी तक निवेदित-
हर दुःख में मेरी माँ ने,सबूरी करा दी।
की जो जिदें उस माँ ने,पूरी करा दी।।
वक्त का पहिया ऐसे चला मेरे तन पर;
कि वक्त ने आज मुझे,मजूरी करा दी।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
मंदिर में नवयुवक
मित्रों ,विगत दिनों मैं मंदिर गया था,आँखों देखी बात है मैंने मंदिर में विराजमान शिवलिंग के दर्शन किये,फिर मैं जब बाहर निकला तो फिलोस्फिक दृष्टिकोण से देखा तो लगा की कुछ लोग तो सच्चे मन से आते परंतु कुछ लोग केवल और केवल रंगिलियां देखने आते है।ज्यादातर अब जहाँ तक मैंने देखा है तो नवयुवक आज के जमाने के अनुसार प्रेम प्रसंग के चक्कर में मंदिर में आना जाना लगा रहता है। मैंने एक युवक को देखा जो बढ़िया,तिलक लगाये हुए,बना-ठना था,परंतु वो केवल मुझे स्मार्ट दिखने का प्रतीक लगा। पूजा बेमन से कर रहे थे पर उनकी नजरे रंगिलियों पर थी।चार पंक्तियाँ मेरे मन में इसी बात पर उमड़ी जो आप सभी तक निवेदित-
आँखों देखी मनचलों की दशा,
तो लगा मंदिर में घोर पाप होता है।
कैसे हो भला इस भारत देश का जहाँ,
तिरछी नजरों से ईश्वर का जाप होता है।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
Wednesday, 3 May 2017
सरस्वती-वंदना(हे सरस्वती!मेरी माता)
हे सरस्वती!मेरी माता, हे सरस्वती!मेरी माता।
ज्ञानदायनी,वीणावादिनी कहकर मैं ध्याता।।
ज्ञान की देवी तुम हो,देती सबको ज्ञान।
जो भी तेरा ध्यान लगावे,बनता वही महान।।
तेरे ध्यान से माता,जगत बुद्धि पाता।
हे सरस्वती!मेरी माता★★★★★★★★★★।।
सेवा करूँ मैं दीन-दुखी की,दो मुझको वरदान।
मात-पिता सेवा करना, गुरुओं का सम्मान।।
परमपिता माँ आदिशक्ति के,चरणों में सुखपाता।
हे सरस्वती!मेरी माता★★★★★★★★★★।।
करूँ वंदन मैं तेरा, करो कृपा सदा मुझ पर।
चरणों में मैं ध्यान लगाऊँ, करो दया माँ मुझ पर।।
गाऊँ वंदना मैं तेरी,मुझको कुछ नहीं आता।
हे सरस्वती!मेरी माता★★★★★★★★★★।।
तेरी कृपा होती जिस पर,बने वही मतवाला।
सूर्य नहीं बन सकता मैं,"दीपक"बन दूँ उजाला।।
"दीपक"नाम अमर माँ कर दे,तुम्हीं हो भाग्य विधाता।
हे सरस्वती!मेरी माता★★★★★★★★★★★।।
मुक्तक- दे साथ मेरा माँ तू हंसवाहिनी।
कर दे कंठ सरस,वीणावादिनी।।
दे-दे ज्ञान अपार तू ,माँ मुझको;
जला ज्ञान का"दीपक"ज्ञानदायिनी।।
हे हंसवाहिनी माँ,तेरा साथ रहे हरदम।
रहे दया-दृष्टि तेरी,पनपे न कोई रे गम।।
है ज्ञान की देवी तू,कहे सब ज्ञानदायिनी;
दे ज्ञान का भंडार माँ,यूँ बढ़ते रहे कदम।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
Tuesday, 2 May 2017
कांग्रेस सरकार
कूद गयी अखाड़े में,देखो फिर से कांग्रेस।
करे नहीं बात जो कभी भी,फेस टू फेस।।
हारना तो उनका अब पक्का ही है दोस्तों;
जिन पर हो लदे अनगिनत,ढेरों सारे केस।।
हुआ सफाया कॉंग्रेस का,देखो हर जगह से।
हारे गये आज ये,अपने कर्मों की वजह से।।
करम फूटे इनके यारो,तो फूटते ही चले गए।
हर जगह से इनके,क्यूँ हाथ फिसलते गए।।
सत्ता का लालच बहुत,बेकार होता है।
चूहा भी अपने वक्त पर,शेर होता है।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
होली-गीत
खेले राधा संग कन्हाई; रे होली भैया।
मुबारक हो सबही के; होली दिन भैया।।
होली घर-घर; खुशियाँ लावेला।
इक-दूजे के; प्यार सिखावेला।।
हुइहै गाल सबही के रे; लाल-पीले भैया।
खेले राधा संग कन्हाई★★★★★★।।
होली प्यार के; अनमोल त्यौहार बा।
खेलत रंग कान्हा; अरु ब्रजवाला।।
मस्ती में सबु आज; झुमिहै रे भैया।
खेले राधा संग कन्हाई★★★★।।
प्यार के रंग मा; सब रंग डाला।
कौनौ शिकवा न; आपन मन में पाला।।
प्रेम से रउआ सब; होली मनावा रे भैया..........
खेले राधा संग कन्हाई★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
रक्षाबंधन पर कविता
सावन का महीना, भाई बहनों का प्यार।
मुबारक हो सभी को, रक्षाबंधन का त्योहार।।
प्यारी सी राखी, बतलाती है अटूट प्यार।
मुबारक हो सभी को, रक्षाबंधन त्योहार।।
जा रही है आज लज्जा, बहनों की यार।
मुबारक हो सभी को, रक्षाबंधन का त्योहार।।
रो-रो कर लगाती बहना, आज के दिन गुहार।
मुबारक हो सभी को, रक्षाबंधन का त्योहार।।
कहे "दीपक" बहनों की लज्जा की, रक्षा करना यार।
मुबारक हो सभी को, रक्षाबंधन का त्योहार।।
मुक्तक-
रक्षाबंधन के दिन ,मिठाईयों की है बहार।
सदा-सदा के लिए अमर है ,भाई बहनों का प्यार।।
" दीपक " भाईयों सभी, रखना राखी की लाज यार।
मुबारक हो सभी को, रक्षाबंधन का त्योहार।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
चुनावी सिलसिला
सभी दलों के बीच में,छिड़ी चुनावी जंग।
जनता का दल है नहीं,जनता सबसे तंग।।
चमचे हर दल में बहुत,नेता जी के खास।
जीते कैंडिडेट बस,है मौके की आस।।
जीते कैंडिडेट जब,हो अपनी सरकार।
रोब जमेगा हर तरफ,बाकि सब बेकार।।
नेता कुकुर एक सम,मौसम इनका एक।
कुकरी संग कुकुर फिरैं,कार्तिक मास अनेक।।
नेता दिखे चुनाव में,पीछे चमचा रेल।
मस्ती चढ़ी पुलाव में,स्वार्थ का है खेल।।
बड़े बड़े वादे करे,मिटे न गरीबी देश।
जनता के पर नोचते,नेता करते ऐश।।
एक दूसरे पर सभी,कीचड़ रहे उछाल।
सत्ता में ही पहुँचते,हो सब मालामाल।।
हाथ जोड़कर मागंते,जनता से वोट।
मनसूबे नापाक है,दे जनता को चोट।।
मंदिर मुद्दा छोड़कर,महँगाई मुद्दा अपनाय।
काला धन की बात कर,ली सरकार बनाय।।
महँगाई कम न हुई,काला हुआ न सफ़ेद।
परेशान जनता हुई,यही कवि को खेद।।
हरामखोरों की कमी नहीं,है हिंदुस्तान।
दोधारी तलवार ज्यों,किन्तु एक ही म्यान।।
लंबा तिलक लगायके,राम नाम पट डाल।
मौका रहे तलाश है,फँस जाये चिड़िया जाल।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
चुनावी बागडोर
कांग्रेस का हाथ ,है सबके साथ।
गुंडों की औकात,समाजवादी के साथ।।
दलित पिछड़ो की बात,बसपा के साथ।
खुराफात की बात,भाजपा के साथ।।
जिसने राम को है जपा,वही है भाजपा।
जो भगवान को भूला उससे जनता है खफा।।
ऐसे दल के नेता का चुनाव में है पत्ता सफ़ा।
दगेबाजों को जनता,अब कर देगी दफ़ा।।
इंसान तो इंसान है राम को बख्शा नहीं।
भाजपा शैतान है,पर पाक का नक्शा नहीं।।
गठबंधन खिचड़ी पकी,सपा कांग्रेस बीच।
कोई जनता का न भला,सबके सब है नीच।।
समय समय की बात है,आज समय का फेर।
छीनी साइकिल बाप की, ये कैसा है अंधेर।।
खलनायक है अमर सिंह,महाकाल शिवपाल।
जादूगर अखिलेश का, चला है इंद्रजाल।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
Monday, 1 May 2017
मोबाइल हास्य कविता
हर पल का रे साथ है,तुम्हारा हमारा।
करम करें कोई भी,मोबाइल एक सहारा।।
जबसे आया फैशन,मोबाइल का यारों।
तबसे बातें हैं समझे,इशारों ही इशारों।।
व्हाट्सएप्प-फेसबुक,के रूपों ने तुम्हें पुकारा।
हर पल का★★★★★★★★★★★★।।
मन के पंख लगा के,दूर कहीं चले जाए।
जहाँ कोई डिस्टर्ब,हम तक पहुंच न पाए।।
मोबाइल की खुशबू से,महके तन मन हमारा।
हर पल का★★★★★★★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094
Tuesday, 25 April 2017
गौ-पुकार
देती हूँ दूध मैं, तन में देव समाये।
दूँ गौमूत्र और गोबर,जो रोग भगाये।।
फिर मांस खातिर,क्यों मारे है मुझको।
तड़पती हूँ बहुत,शर्म आती नहीं तुमको।।
दिया दूध जब तक,मैं माँ कहलाई।
नहीं मिला दूध तो सड़क की राह दिखाई।।
आवारा बनकर मैं घूमती इधर-उधर।
भरती पेट हूँ मैं, कागज-पालीथीन खाकर।।
सर्दी हो या गर्मी दोनों की,सहती हूँ मैं मार।
बरसात में भी नहीं खुलते,बेटे तुम्हारे द्वार।।
पकड़ कसाई कत्लखाने में,मारे बेदर्दी से।
खाते मांस मेरा,मेरे बेटे ही मस्ती से।।
मत कहना आज के बाद,माँ तू मुझे।
माँ की ममता की,आज सौगंध है तुझे।।
शर्म आती है मुझको,बेटे कहते हुए।
क्यूँ कि परायी हूँ,अपनों के होते हुए।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094
सैनिकों की दीपावली
इस वर्ष दीपावली,सीमा पर मनाएंगे।
अपनी मातृभूमि का,ऋण हम चुकायेगें।
अपनी देहरी पर हम भी दीप जलाएंगे।
आँगन में अपने भी ,रंगोली सजायेंगे।।
पटाखे की जगह,बंदूक हम दगायेगें।
इस नापाक का हम,अंधकार मिटायेंगे।।
तजकर प्राण,मातृभूमि की रक्षा करेगें।
गम नहीं जलते"दीपक"फिर से बुझेगें।।
बुझ गए तो पहनेगें तिरंगा,और होगी सलामी।
अगली बार फिर से मनाएंगे सीमा पर दीवाली।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094
दीपावली पर कविता
आपकी देहरी पर,दीप जलता रहे।
सारे जहां से अंधकार,यूँ ही मिटता रहे।।
दीपों का त्योंहार,है दीपावली।
लाती घर-घर में,जो खुशहाली।।
आये श्री राम जब,पूरा कर वनवास।
मनाकर दीपावली, मिटी अयोध्या की आस।।
सभी के घर है,आज सजे हुए।
आंगन भी,रंगोली से भरे हुए।।
पूजन करते है,लक्ष्मी-गणेश का लोग।
लड्डुओं का सभी जन,लगाते है भोग।।
जलाते है पटाखे फुलजड़ियाँ और बम।
खुशियाँ आपस में, नहीं होती है कम।।
पहनते नए कपड़े खिलाते है मिठाई।
"दीपक"दीपावली की हार्दिक है बधाई।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094
एक बार नहीं दोस्तों,हर बार लिखूँगा
एक बार नहीं दोस्तों,हर बार लिखूँगा।।
वेलेंटाइन-डे नहीं,माँ-बाप का प्रेम लिखूँगा।।
माँ-पालती है तुझको,नौमास उदर में।
देकर खुशी तुझे वो,रहती है कष्ट में।।
माँ का दिल ममता का,मंदिर बताउँगा।
एक बार नहीं दोस्तों,★★★★★★★★।।
माँ गीले में सोकर,सूखे में सुलाती।
थपकी दे-दे देकर,खुद भी सो जाती।।
माँ-बाप से ही जीवन,हर बार मांगूगा।
एक बार नहीं दोस्तों,★★★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094