Tuesday, 25 April 2017

गौ-पुकार

देती हूँ दूध मैं, तन में देव समाये।
दूँ गौमूत्र और गोबर,जो रोग भगाये।।

फिर मांस खातिर,क्यों मारे है मुझको।
तड़पती हूँ बहुत,शर्म आती नहीं तुमको।।

दिया दूध जब तक,मैं माँ कहलाई।
नहीं मिला दूध तो सड़क की राह दिखाई।।

आवारा बनकर मैं घूमती इधर-उधर।
भरती पेट हूँ मैं, कागज-पालीथीन खाकर।।

सर्दी हो या गर्मी दोनों की,सहती हूँ मैं मार।
बरसात में भी नहीं खुलते,बेटे तुम्हारे द्वार।।

पकड़ कसाई कत्लखाने में,मारे बेदर्दी से।
खाते मांस मेरा,मेरे बेटे ही मस्ती से।।

मत कहना आज के बाद,माँ तू मुझे।
माँ की ममता की,आज सौगंध है तुझे।।

शर्म आती है मुझको,बेटे कहते हुए।
क्यूँ कि परायी हूँ,अपनों के होते हुए।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

सैनिकों की दीपावली

इस वर्ष दीपावली,सीमा पर मनाएंगे।
अपनी मातृभूमि का,ऋण हम चुकायेगें।

अपनी देहरी पर हम भी दीप जलाएंगे।
आँगन में अपने भी ,रंगोली सजायेंगे।।

पटाखे की जगह,बंदूक हम दगायेगें।
इस नापाक का हम,अंधकार मिटायेंगे।।

तजकर प्राण,मातृभूमि की रक्षा करेगें।
गम नहीं जलते"दीपक"फिर से बुझेगें।।

बुझ गए तो पहनेगें तिरंगा,और होगी सलामी।
अगली बार फिर से मनाएंगे सीमा पर दीवाली।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

दीपावली पर कविता

आपकी देहरी पर,दीप जलता रहे।
सारे जहां से अंधकार,यूँ ही मिटता रहे।।

दीपों का त्योंहार,है दीपावली।
लाती घर-घर में,जो खुशहाली।।

आये श्री राम जब,पूरा कर वनवास।
मनाकर दीपावली, मिटी अयोध्या की आस।।

सभी के घर है,आज सजे हुए।
आंगन भी,रंगोली से भरे हुए।।

पूजन करते है,लक्ष्मी-गणेश का लोग।
लड्डुओं का सभी जन,लगाते है भोग।।

जलाते है पटाखे फुलजड़ियाँ और बम।
खुशियाँ आपस में, नहीं होती है कम।।

पहनते नए कपड़े खिलाते है मिठाई।
"दीपक"दीपावली की हार्दिक है बधाई।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

एक बार नहीं दोस्तों,हर बार लिखूँगा

एक बार नहीं दोस्तों,हर बार लिखूँगा।।
वेलेंटाइन-डे नहीं,माँ-बाप का प्रेम लिखूँगा।।

माँ-पालती है तुझको,नौमास उदर में।
देकर खुशी तुझे वो,रहती है कष्ट में।।
माँ का दिल ममता का,मंदिर बताउँगा।
एक बार नहीं दोस्तों,★★★★★★★★।।

माँ गीले में सोकर,सूखे में सुलाती।
थपकी दे-दे देकर,खुद भी सो जाती।।
माँ-बाप से ही जीवन,हर बार मांगूगा।
एक बार नहीं दोस्तों,★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

Sunday, 23 April 2017

14 फरवरी-मंगल दिवस जन्मदाता का

मंगल दिवस जन्मदाता का,करूँ मैं वंदन मात-पिता का।
दिवस 14 फरवरी पावन सबका,करूँ मैं पूजन मात-पिता का।

माँ रखती,नौ-मास उदर में।
देकर सुख,रहती कष्टों में।।
नहीं चुका पाऊँ ऋण, ऐसी माता का।
मंगल दिवस जन्मदाता का,★★★★★★★★★★।।

सूखे में है मुझे सुलाती,खुद गीले में है सो जाती।
मुझसे कहती सो जा बेटा,थपकी दे-दे खुद सो जाती।।
माँ का दिल मंदिर है ममता का।
मंगल दिवस जन्मदाता का,★★★★★★★★★★।।

है माता शिशु की, प्रथम पाठशाला।
मत करना तू अनादर,बन मतवाला।।
वरन अंत में,फिर द्वारा नर्क का।
मंगल दिवस जन्मदाता का,★★★★★★★★★★।।

मात-पिता करते बहुत,तुझे है प्यार।
करें आशा तुझसे,तू भी देगा प्यार।।
"दीपक"रौशन नाम करेगा,आभारी है मात-पिता।
मंगल दिवस जन्मदाता का,★★★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.न.-9560802595,9628368094


Thursday, 13 April 2017

LOVING LADY

Really, Love is a very big ocean.
The love of lovers, alls Indian.
I also want to get a girlfriend;
Who is a fair weather friend.

My love must be beautiful and nice character.
To serve lifetime my mother and father.
The real pleasure of love is something different;
But today's modern love is only frat.

Composed By-Kavi Kuldeep Prakash Sharma"Deepak"
Mo.-9560802595,9628368094

MUSE MOTHER (PRAYER)

O My muse mother! O My muse mother!
Thou are harpist and alls educator.
I am also thy tiny children,;
So, provided me also wit and ken.

I want to say in little verbal athourity;
Mother, thou always favour me.
My sider and last wish is that;
Thou ever conferred me intellect.

O My muse mother! O My muse mother!
O My muse mother! O My muse mother!

Composed By-Kavi Kuldeep Prakash Sharma"Deepak"
Mo.-9560802595,9628368094

Monday, 10 April 2017

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर कविता

बंद हो गए बूचड़खाने,
औ मिट रहा है अत्याचार।
कि योगी ने बदल दिया संसार।।

लहराएगा भगवा ही,हर तरफ है योगी।
भाषण सुनकर रोगमुक्त,हो जाते है रोगी।।
संस्कृति है पहचान जिसकी;
है वो सचमुच अवतार।
कि योगी ने बदल दिया संसार।।

वादे करते जितने योगी,करते है सब पूरे।
रहे CM जब तक,न कोई काम बचे अधूरे।।
कर रहे वो सब कुछ जो,
न कर पायी कोई सरकार।
कि योगी ने बदल दिया संसार।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

दोस्ती पर कविता

सच्ची दोस्ती जिसके पास,उसके पास दौलत की भरमार है।
हम दोस्तों की टोली में,न कोई जीत और न ही कोई हार है।।
बन जाये चाहे दुश्मन हम दोस्तों का,क्यों न सारा जमाना;
क्या फर्क पड़े जब दोस्तों के दिल में,बस प्यार ही प्यार है।।

मिले जो फिर से वो अतीतों के पल;
मानो मुझे सारा,जहाँ मिल गया।।
बिखरे-बिछड़े हुए उन सभी दोस्तों का;
फिर मुझको साथ,यहाँ मिल गया।।

जीवन  के  वो  हँसी  पल, मिल जाएँ।
काश!दोस्तों वो दिन,फिर खिल जाएँ।।
हो वो आमने-सामने फिर से,कोचिंग की बेंच पे;
काश!वो पुराने दोस्त फिर मिल जाएँ।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

कवि-परिचय(काव्य में)

प्रथमहि नमन गजानन का ,है देवो में महान।
पूजन प्रथमहि होत है,करहु हमार कल्याण।।

दोसर नमन सरस्वती,है परम ज्ञान विद्यमान।
कृपा करहु मोय पे भी,देहु मोय भी ज्ञान।।

तीजा नमन मातु-पितु,चौथा गुरु महान।
इन सबकी सेवा ते,होत मनुष्य कल्याण।।

पिता जसकरन लाल,माता है मिथलेश।
जन्म मिले इन मातु-पितु,हरहु हमारे क्लेश।।

करू जन्म भर सेवा इनकी,"दीपक'नाम हमारा।
दीपक-अमर दो भाई,गोला नगर बसेरा।।

लाख बुरा हो चाहे जमाना,भूलो न भगवान।
जैसे जिसमें गुण-अवगुण,वैसा उसका मान।।

कुकर्मी दुष्ट इंसां है,समझे न मानव धर्म।
मानव जीवन अर्थ न समझे करता वही कुकर्म।।

रिश्वत खोरी जगह-जगह है,और है बेदर्द जमाना।
धन- संपत्ति कुछ कम न आवे,नहीं साथ कुछ जाना।।


रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

Sunday, 9 April 2017

आधुनिक प्रेम के मुक्तक

लाल हरे पीले यहाँ सब रंगीन दिखाई देते है।
उनके सोलह श्रृंगार बेहतरीन दिखाई देते है।।
हमको तो लगता है इनका दिखावा ऊपर से
रंगीनियों के मामले सब संगीन दिखाई देते है।।

देखो दोस्तों लड़कियों के आज जलवे;
कि लड़को का गरीबी में आटा गीला है।
प्यार करना न इन्हें लैला-हीर समझकर कभी;
कि ये आज की बदनाम मुन्नी और शीला है।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

HOLY TULSI

Oh! My Holy Tulsi, Oh! My Holy Tulsi,
You are Bosom friend of Lakshmi.
You destroy all the sins,
You're always Blessings.
You are very beneficial to all,
So "Rognashini",many people call.
You seem to be in the house,
that house Decease-free house.

           
Composed By -
Kavi Kuldeep Prakash Sharma "Deepak"
Mo.-9560802595,9628368094

रंगीन पलों की पुरानी यादें

कई सदियाँ है बीती ;कई साल बीते है।
हम तो रोज तुमको;याद करके जीते है।।
क्यूँ कहती नहीं हाँ तुम प्यार करती हो मुझसे;
कि चुप रहकर ही हम;सारे ग़मों को पीते हैं।।

दर्द को अब मैं रोक नहीं सकता।
सुनाये बिन मैं ठहर नहीं सकता।।
फिक्र तो आज भी है उनकी मगर;
बेबस किरदार मैं कह नहीं सकता।।

पीर दिल की बताऊँ,मैं कैसे तुम्हें।
याद आ जाते मुझे,वो सारे लम्हें।।
वक्त वो था जब हम प्यार करते थे,
आज वो दिन है अब,कैसे भूले तुम्हें।।

झूठा ही सही सनम बस एक बार,तुम प्यार मुझे दे दो।
जिंदगी वीरान है तेरे बिन,इक बार दीदार मुझे दे दो।।
वैसे भी ज्यादा नहीं जी पाऊँ,मैं तुम्हारे बिन प्रिये;
कह दो कि प्यार तुम्हे भी है,फिर मौत हज़ार मुझे दे दो।।

अब बिछड़ के उससे;ख़ुशी जाहिर न कर पाते।
याद में सिर्फ उसकी दुःखो के गीत है हम गाते।।
गर किसी से जुदा होना इतना ही आसान होता;
तो जिस्म से रूह लेने खुद यमराज न आते।।

खड़ा हूँ प्यार की चौखट पे,इंतजार है किसी का।
बैचैन दिल ये आज मेरा,मेहमान है किसी का।।
जाने को तो मैं चला जाऊँ,छोड़ कर दुनियाँ हमेशा;
मगर क्या करे किरदार,कर्जदार है किसी का।।

न पसंद हूँ तुझे,तो जा,जी ले किसी और के लिए।
आजमा लेना उसे और मुझे,फिर सोचना मेरे लिए।।
दिल दुखाये गर वो तेरा,तो आ जाना चौखट पे मेरी; ये"दीपक"जला है,जला ही रहेगा,सिर्फ तुम्हारे लिए।।

साथ जब तक रहा तेरा मेरे साथ,सोचता हूँ काश!जिंदगी ही बस इतनी होती।
क्या कहूँ ज्यादा तुझसे अब,काश!तुझे भी मोहब्बत मेरे जितनी होती।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

विदेशी पहनावा

तो नारी को मर्यादा चाहिए,न खुले नंगा नाँच।
मर्यादा में ही भलाई है,न आवे गंगा को आँच।।

अपने हक़ के लिए लड़ों हे नारी! ये तेरा अधिकार है।
हक़ खातिर मैं भी साथ हूँ,बस कपड़ो को धिक्कार है।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

झूठा प्रेम

क्या गुल खिलाकर रंग लाएगी तेरी चुप्पी;मुझको पता नहीं। सनम मैं तो बस जानू इतना;कि मुझसे हुई कोई
खता नहीं।।

पराये रूठे तो कोई गम नहीं;
पर अपने रूठे तो दर्द होता है।
चाहो जिनको जिंदगी में सबसे ज्यादा;
उन्हे खोना ही बस एक गम होता है।।

मेरे अरबानों से अरबान,तुम मिलाओ तो जरा।
ख़त्म हो खुद की,आरजू तुम देखो तो जरा।।
तड़पा हूँ बहुत मैं,तड़पाओ न अब मुझे;
ख़ुशी से प्यार के दो बोल,तुम बोलो तो जरा।।

यूँ उदास न रहा करो तुम,कोई तो ख़ुशी देने वाला है तुम्हें।
मोहब्बत है जिसे,वो हर कदम पर साथ देने वाला है तुम्हें।।
याद जब-जब करे तुमको,वक्त हो तो याद तुम भी कर लेना;
खुशनसीब हो तुम,हजार हूरों में कोई चुनने वाला है तुम्हें।।

प्यार करना कोई खेल नहीं,मैं सच कहता हूँ।
धोखा देकर भले ही तू चली जाए दिल से;
फिर भी इस दिल में तेरे लिए जगह रखता हूँ।।

ए दोस्तों हम इतने पागल हुए प्यार में कि;
हमको दिन-रात उनकी याद सताती रही।
हमसे किया नाटक सिर्फ उन्होंने झूठे प्यार का;
और वो दूसरों के साथ रंगीलियां मनाती रही।।

फेकें हुए प्रेमरूपी जाल में मेरे;
दोस्तों वो कभी उलझ न पायी।
जिंदगी में घुटन सी हो रही है अब;
क्यूँ कि वो हमें कभी समझ न पायी।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

सच्चे प्रेम की परिभाषा

समझाता हूँ इस बीमारी को;नाम जिसका है प्यार।
हो जाए बीमारी ये तो;मुश्किल पड़े करना इजहार।।
है इस बीमारी का अंत नहीं;धीरे-धीरे है बढ़ती जाती।
नयनो के द्वार से ये;दिल के कमरे में है घुसती जाती।।

सब कुछ खो जाये मगर सच्चा प्यार कभी न खोना।
सनम,ये जिंदगी तुम्हारी,मुझे तुम्हारे बिना न जीना।।
सौ बार सोचकर फिर याद करना इस मजनू को भी ;
जिंदगी गर तेरी न हुई,तो मुझे किसी और का न होना।।

सच्चा प्यार नहीं वो,जो रातें जगने से मिल जाये।
उस घर के आँगन में,एक नयी कली खिल जाये।।
जगते तो कुत्ते भी है,लेकिन रहते वो भी अकेले;
प्रेम का बंधन वो है यारों,जो प्राणों से मचल जाये।।

व्यथा,कथा दोनों निहित,इस प्यार में।
कष्ट,पीड़ा की न सीमा,इस संसार में।।
कितने दुश्मन आये यहाँ,प्यार को न मिटा पाये।
सदियों की प्रेम परम्परा को,कभी न डिगा पाये।।
साधू-संतो ने भी पाठ पढ़ाया,ढाई अक्षर प्यार का।
प्रेम बिना न"दीपक"जीवन,नियम यही संसार का।।

न जाने कितने मर मिटे है;इस ढाई अक्षर के लिए।
कई बिछड़े है इक दूसरे के बंधन से;प्यार के लिए।।
इसलिए कुछ तो है अजीब इस प्यार में दोस्तों वरना;
मीरा क्यूँ पीती विष का प्याला;श्रीकृष्ण के लिए।।

मछली के जीवन का,एक सहारा है पानी।
जाल में फसकर निकले,उसकी है रवानी।।
क्या कसूर है जो,मार डालते हो बेचारी को;
जो छोड़ जाती अपने मेल की,सत्य है कहानी।।

प्रेम की रेलगाड़ी छुक-छुक है चलती जब;
आँखों से आँखे चार होती,और होती है चुपके-चुपके बात।
कहने को तो दुनियां वालों कुछ भी कह दो;
जब भगवन ही न बच पाये इससे,तो मेरी क्या औकात।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

मेरे प्यार की शुरुआत

दोस्तों सबके जीवन में इक लम्हा,रंगीन होता है।
उस लम्हों की यादों का गट्ठर, बेहतरीन होता है।।
घटनाएँ तो कई होती है जीवन के सफर में लेकिन;
जिंदगी के सफर में वो मामला,संगीन होता है।।

पहली बार रब ने जब,मिलाया है तुझे।
रंग तेरे प्यार का तबसे,छाया है मुझे।।
प्रेम करता बहुत हूँ,मैं तुझसे प्रिये;
आज तलक इजहार,न कर पाया है तुझे।।

न जाने आज कैसे;इजहार हो गया।
तेरे प्यार में अब मैं;गवांर हो गया।।
ख्यालों में बैठा रहूँ,तेरी गली के मोड़ पे;
कि सनम मुझको तुमसे; प्यार हो गया।।

तमन्ना है मेरी इस जिंदगी में;बस उसे पाने की।
हर दिन हर वक्त;उसको ख़ुशी दिलाने की।।
न मिली अगर वो तो जिंदगी ही मिटा दूँगा अपनी;
फिर आस होगी फ़कत;उसे अगले जन्म पाने की।।

क़िस्मत थी मेरी दोस्तों,तो उनसे मुलाकात हो गयी।
चाहते थे हम जैसा जीवनसाथी,उनसे बात हो गयी।।
जबसे देखा उनको,खो गए हम जैसे अनजान राही;
दोस्तों बस वहीं से मेरे,प्यार की शुरुआत हो गयी।।

ए सनम मेरा तेरे लिए,एक पैगाम है।
तेरा प्रेम मेरे लिए,एक मीठा जाम है।।
जी नहीं सकता तेरे बगैर इक पल भी मैं;
प्रेम तो मेरी जिंदगी का,दूसरा नाम है।।

सदियों से प्यार की;ये दुश्मन है जहान।
प्यार की खातिर मैं;लुटा दूँ अपनी जान।।
सीने में मेरे तू ही;चीर के दिखलाऊँ मैं,
कि तू ही है मेरी गीता;तू ही है कुरान।।

प्रेम की बारिश के लिए,हम बादल हो गए।
उसी बारिश में भीगकर,हम पागल हो गए।।
देखा है जबसे मैंनें उसका अक्स दोस्तों,
उसकी तिरछी नज़रों से,हम घायल हो गए।।

उसकी मीठी बातों ने,प्रेम इतना बढ़ा दिया।
सोये हुए प्रेम के पुतले को,फिर जगा दिया।।
काम के हम भी बहुत थे,ग़ालिब लेकिन ;
कमबख्त इश्क़ ने मुझे निकम्मा बना दिया।।

भूल जाये हम सारा जहाँ लेकिन,
तुझको हम कभी न भुला पायेगें।
वो स्वर्णिम पल जो बीते तुम्हारे साथ,
सनम मरने के बाद भी याद आयेगें।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

कवि बनने का राज

मैं इक सीधा साधा बच्चा था।
पढ़ने में बहुत न अच्छा था।।
तो इक दिन मिली मुझे माया।
संगेमरमर थी उसकी काया।।
देख उसे पेड़ में एक नया फूल खिल गया।
जवानी में फिर मेरा दिल उसपे मचल गया।।
बनाया प्लान मैंने मोहब्बत इज़हार करने का।
सातों जन्म साथ जीने और साथ मरने का।।
प्यार का इज़हार न मैं कर पाया।
गम के बादल लपेटे घर आया।।
उसकी मोहब्बत ने कवि मुझको बना दिया।
फिर श्रृंगार ने ऊँचे शिखर पर पहुँचा दिया।।
सच कहता हूँ दोस्तों अगर वो न होती;तो मैं कवि न होता। कोई कारण जरूर  है जग वालों वरना आज रवि न होता।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

लड़कियों से कभी भी; आंखे न मिलाना(आधुनिक प्रेम)

लड़कियों से कभी भी;आँखे न मिलाना।
ये चाहती है हर दिन;इक नया दीवाना।।

प्यार करो कितना भी;ये अपनी होती नहीं।
इनका दिल है पत्थर का;ये कभी रोती नहीं।।
इसलिए ए दोस्तों;इनके लिए न आसूँ बहाना।
लड़कियों से★★★★★★★★★★★★।।

हमने भी दोस्तों;यही एक बार किया था।
इक स्वर्णिम लड़की से;मैंने प्यार किया था।।
पर कहता है रो-रो कर आज ये अफ़साना।
लड़कियों से★★★★★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

अर्थी-सच्चे प्रेमी की

जिस दिन उठेगी तेरी डोली,किसी और के घर;
उस दिन इस मजनू की अर्थी उठेगी;

फूल तुझ पर भी लोग बरसाएंगे;
फूल मुझ पर भी लोग बरसाएंगे;
अंतर सिर्फ इतना होगा सनम,तू सजेगी,मैं सजाया जाऊँगा।

तू भी अपने घर को जायेगी;
मैं भी अपने घर को जाऊँगा;
अंतर सिर्फ इतना होगा सनम,तू राज़ी से जायेगी,मैं बेराज़ी
जाऊँगा।

लोग वहां भी होंगे;
लोग यहाँ भी होगें;
अंतर सिर्फ इतना होगा सनम,वहाँ हँसना होगा,यहाँ रोना होगा।

सात फेरे वहाँ भी होगें;
सात फेरे यहाँ भी होंगे;
अंतर सिर्फ इतना होगा सनम,तुझे अपनाया जायेगा,मुझे
जलाया जायेगा।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

क्या हो गयी खता हमसे,कहने लगी जो गैर

क्या हो गयी खता हमसे,कहने लगी जो गैर।
माना तुझे सदा अपना,हम जिये न तेरे बगैर।।

बात न होती जब तुमसे तो;है दिल ये कहीं लगता नहीं।
याद तेरी आये बार-बार,दिल और कही मचलता नहीं।।
क्या हो गया है ऐसा हमसे करने लगी जो इतना बैर।
क्या हो गयी★★★★★★★★★★★★★★।।

यूँ ऐसे न तुम मुँह मोड़ो;न जाओ बीच रास्ते में छोड़कर।
दिल ये दिया है तुमको;क्या मिलेगा तुमको इसे तोड़कर।। सनम इतनी चाह है तुमसे;क्या मेरी नहीं है कोई खैर।
क्या हो गयी★★★★★★★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

इश्क़ में गम का तराना

बात ही कुछ ऐसी है,गम का तराना गाने लगा हूँ।
देखा जबसे तुमको मैंनें,तबसे प्यार करने लगा हूँ।।

ऑंखें चार होती है जब,मन में खटक सी हो जाती है।
आँखों का कसूर क्या है,आँखें तो ये भटक ही जाती है।।
देखने के लिए सनम तुमको,अब मैं तरसने लगा हूँ।
बात ही★★★★★★★★★★★।।

देखा जब मैनें पहली दफा,तेरे प्यार का रंग चढ़ा मुझे।
प्यार करता बहुत हूँ मैं,आज तक बता न सका तुझे।।
याद में तेरी अब मैं हर पल,अश्क बहानें लगा हूँ।
बात ही★★★★★★★★★★★।।

गम के बादल सिर्फ लपेटे,घूम मैं रहा हूँ।
तेरी यादों में बस हर पल,तड़प मैं रहा हूँ।।
जीना चाहूँ मगर यहाँ,घुट-घुट के मरने लगा हूँ।
बात ही★★★★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

नववर्ष-नवजीवन

करता हूँ स्वागत,नव वर्ष तुम्हारा।
हरो इस जगत का,तुम अंधियारा।।

सबके मन में,जगे नयी आशा।
बोले सभी जन,प्रेम की भाषा।।
घर-घर में फिर फैले,नूतन उजियारा।
करता हूँ★★★★★★★★★★।।

जन-जन में सदा,सद्भाव रहे।
आपस में कोई न,भेदभाव रहे।।
मिटे पुरानी रीति,कायम रहे भाईचारा।
करता हूँ★★★★★★★★★★★।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

नववर्ष-जिंदगी का एक वर्ष कम

एक वर्ष जिंदगी का,दोस्तों कम हो गया है।
पुरानी यादों पे फिर से,मरहम हो गया है।।

कुछ तमन्नाएं थी दिल में,दिल में ही रह गयी।
तो कुछ बिन माँगे ही वो,मुझको मिल गयी।।

कुछ का साथ यही तक था,तो कुछ का साथ अब होगा। समय के हर मोड़ पर,जीवन दांव पर होगा।।

कुछ मुझसे मिलकर भूल गए तो कुछ,आज भी याद करते है। खुश रहे वो जीवनभर,ऐसी रब से हम फरियाद करते है।।

कोई गलती हो हमारी तो,हमको माफ करना।
गर अच्छा लगे तो दिल से,मुझको याद करना।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम पर कविता

चला गया वो आधुनिक;भगवान हमारा।
धरती सूनी हुई है;जग सूना हुआ हमारा।।

चले गए भगवान वो;तो जहाँ सारा रोया है।
देखो यारो मेरे देश ने;कलाम को खोया है।।

देश का सच्चा सपूत;था यारों वही।
भेदभाव से परे;नेक बंदा था वही।।

देता हरदम था जो एकता का पैगाम।
हुई थी जिनसे दुश्मनों की नींद हराम।।

दिया है जिसने देश को परमाणु;वो कलाम है।
उस मिसाइल मैन को यारों;शत्-शत् सलाम है।।    

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

महात्मा गाँधी जयंती पर कविता

अहिंसा के पुजारी गाँधी को; नमन हमारा है।
ये देश है बलिदानों का;जो प्राणों से प्यारा है।।

देखा था बापू जी ने ;जो देश खातिर सपना।
किये कई आंदोलन पर;हुआ न कोई अपना।।

पहला सपना था मेरे बापू जी का;स्वच्छ भारत की छवि। नशामुक्त समाज,रोजगार थे दूजे तीजे;बतला रहा है कवि।।

तो आज भी है ये मुद्दे; हम सब लोगों पर भारी।
इसलिए हर जगह फैली;भुखमरी और महामारी।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

स्वामी विवेकानंद जयंती पर कविता

आओ युवाओं फिर से,आज हम लेखनी चलाते है।
शत-शत नमन करें उनको,विकेकानंद जो कहलाते है।।
माता भुवनेश्वरी और पिता विश्वनाथ घर,था जन्म पाया।
निर्भीकता और कुशाग्रबुद्धि से,था कइयों को चोकायाँ।।
स्वयं भूखे रह नरेन्द्रनाथ,अतिथि को भोजन खिलाते थे।
वर्षा में खुद बाहर सोते,और अतिथि को भीतर सुलाते थे।।
रामकृष्ण परमहंस को नरेंद्र ने,गुरु रूप में पाया।
सन्यासी जीवन जीकर,था जन-जन को जगाया।।
ओजस्वी वचनों से जनमानस में,शक्ति का संचार किया।
लक्ष्य प्राप्ति तक न रुकने का,युवाओ को सन्देश दिया।।
विश्व धर्म सभा में था,सबके अंतर्मन को छू लिया।
धार्मिक एकता का फिर,सबको पाठ पढ़ा दिया।।
भारतीय संस्कृति के प्रहरी,दर्शन के थे प्रकांड विद्वान।
ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व को है मेरा शत-शत प्रणाम।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

महिला सशक्तिकरण दिवस पर कविता

महिलाओं तुम आगे आओ,है जरूरत तुमको सशक्त बनने की।
आ गयी है बारी अब,इस समाज की संकीर्ण सोच बदलने की।।

महिलाओं स्वयं तुमको ही खुद आगे बढ़ना होगा।
हो युगों-युगों से पूजनीय,अब तुमको जगना होगा।

बढ़ती रहना तुम यूँ ही सदा,पर अपनी पति न खोना तुम।
लज़्ज़ा ही सिर्फ तेरा गहना,इसको सँभाल कर रखना तुम।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094