क्या हो गयी खता हमसे,कहने लगी जो गैर।
माना तुझे सदा अपना,हम जिये न तेरे बगैर।।
बात न होती जब तुमसे तो;है दिल ये कहीं लगता नहीं।
याद तेरी आये बार-बार,दिल और कही मचलता नहीं।।
क्या हो गया है ऐसा हमसे करने लगी जो इतना बैर।
क्या हो गयी★★★★★★★★★★★★★★।।
यूँ ऐसे न तुम मुँह मोड़ो;न जाओ बीच रास्ते में छोड़कर।
दिल ये दिया है तुमको;क्या मिलेगा तुमको इसे तोड़कर।। सनम इतनी चाह है तुमसे;क्या मेरी नहीं है कोई खैर।
क्या हो गयी★★★★★★★★★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094
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