Sunday, 9 April 2017

बदलते दिन-माँ-बाप पर कविता

सब देवो में सबसे पहले पूजे जाते है,श्री गणेश भगवान।
की मात-पितु परिक्रमा ब्रह्माण्ड सम,कहा मात-पितु महान।।

याद कर अपने बचपन को,तू मेरे लाल।
रखती थी ध्यान माँ तेरा,जो हर ख्याल।।
भूला है फिर क्यूँ तू,उनके उपकारों को।
जिसने पाला तुझे,झेलकर कष्टों को।।
अब बूढ़े माँ-बाप का,तू सहारा नहीं।
साथ रहना तेरी बीबी को,गवांरा नहीं।।
ईर्ष्या की भावना रखते हो,दोनों अब।
सोचते  हो  यही  बस,मरेगें  ये  कब।।
"दीपक"कहता जो,वो मानो तुम।
जन्नत के रास्ते को,पहचानो तुम।।
क़द्र कर लो इनकी,मिलेगी जन्नत।
पूरी होगी तेरी फिर,सारी मन्नत।।

 मां-बाप का कर्ज़,कभी तुम चुका न पाअोगे।
लख चौरासी फिर भोगोगे,उनको अगर सताअोगे।।

लेखक की विनती-

तरस आता है मुझको,उन मिट्टी के पुतलों पर।
माँ-बाप का मान नहीं,है जिनके घरों पर।।
अरे!आज आओ,कसम खा लेते है सब यहाँ;
खुशियाँ बनके छाएंगे,फिर उनके चेहरों पर।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

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