Monday, 10 April 2017

कवि-परिचय(काव्य में)

प्रथमहि नमन गजानन का ,है देवो में महान।
पूजन प्रथमहि होत है,करहु हमार कल्याण।।

दोसर नमन सरस्वती,है परम ज्ञान विद्यमान।
कृपा करहु मोय पे भी,देहु मोय भी ज्ञान।।

तीजा नमन मातु-पितु,चौथा गुरु महान।
इन सबकी सेवा ते,होत मनुष्य कल्याण।।

पिता जसकरन लाल,माता है मिथलेश।
जन्म मिले इन मातु-पितु,हरहु हमारे क्लेश।।

करू जन्म भर सेवा इनकी,"दीपक'नाम हमारा।
दीपक-अमर दो भाई,गोला नगर बसेरा।।

लाख बुरा हो चाहे जमाना,भूलो न भगवान।
जैसे जिसमें गुण-अवगुण,वैसा उसका मान।।

कुकर्मी दुष्ट इंसां है,समझे न मानव धर्म।
मानव जीवन अर्थ न समझे करता वही कुकर्म।।

रिश्वत खोरी जगह-जगह है,और है बेदर्द जमाना।
धन- संपत्ति कुछ कम न आवे,नहीं साथ कुछ जाना।।


रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

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