Sunday, 9 April 2017

स्वामी विवेकानंद जयंती पर कविता

आओ युवाओं फिर से,आज हम लेखनी चलाते है।
शत-शत नमन करें उनको,विकेकानंद जो कहलाते है।।
माता भुवनेश्वरी और पिता विश्वनाथ घर,था जन्म पाया।
निर्भीकता और कुशाग्रबुद्धि से,था कइयों को चोकायाँ।।
स्वयं भूखे रह नरेन्द्रनाथ,अतिथि को भोजन खिलाते थे।
वर्षा में खुद बाहर सोते,और अतिथि को भीतर सुलाते थे।।
रामकृष्ण परमहंस को नरेंद्र ने,गुरु रूप में पाया।
सन्यासी जीवन जीकर,था जन-जन को जगाया।।
ओजस्वी वचनों से जनमानस में,शक्ति का संचार किया।
लक्ष्य प्राप्ति तक न रुकने का,युवाओ को सन्देश दिया।।
विश्व धर्म सभा में था,सबके अंतर्मन को छू लिया।
धार्मिक एकता का फिर,सबको पाठ पढ़ा दिया।।
भारतीय संस्कृति के प्रहरी,दर्शन के थे प्रकांड विद्वान।
ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व को है मेरा शत-शत प्रणाम।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

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