Sunday, 9 April 2017

झूठा प्रेम

क्या गुल खिलाकर रंग लाएगी तेरी चुप्पी;मुझको पता नहीं। सनम मैं तो बस जानू इतना;कि मुझसे हुई कोई
खता नहीं।।

पराये रूठे तो कोई गम नहीं;
पर अपने रूठे तो दर्द होता है।
चाहो जिनको जिंदगी में सबसे ज्यादा;
उन्हे खोना ही बस एक गम होता है।।

मेरे अरबानों से अरबान,तुम मिलाओ तो जरा।
ख़त्म हो खुद की,आरजू तुम देखो तो जरा।।
तड़पा हूँ बहुत मैं,तड़पाओ न अब मुझे;
ख़ुशी से प्यार के दो बोल,तुम बोलो तो जरा।।

यूँ उदास न रहा करो तुम,कोई तो ख़ुशी देने वाला है तुम्हें।
मोहब्बत है जिसे,वो हर कदम पर साथ देने वाला है तुम्हें।।
याद जब-जब करे तुमको,वक्त हो तो याद तुम भी कर लेना;
खुशनसीब हो तुम,हजार हूरों में कोई चुनने वाला है तुम्हें।।

प्यार करना कोई खेल नहीं,मैं सच कहता हूँ।
धोखा देकर भले ही तू चली जाए दिल से;
फिर भी इस दिल में तेरे लिए जगह रखता हूँ।।

ए दोस्तों हम इतने पागल हुए प्यार में कि;
हमको दिन-रात उनकी याद सताती रही।
हमसे किया नाटक सिर्फ उन्होंने झूठे प्यार का;
और वो दूसरों के साथ रंगीलियां मनाती रही।।

फेकें हुए प्रेमरूपी जाल में मेरे;
दोस्तों वो कभी उलझ न पायी।
जिंदगी में घुटन सी हो रही है अब;
क्यूँ कि वो हमें कभी समझ न पायी।।

रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा"दीपक"
मो.-9560802595,9628368094

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